सारे जाने के लिए आते हैं
दिल दुखाने के लिए आते हैं
रूह तपती जो हो तो सावन भी
जी जलाने के लिए आते हैं
उसकी अनबन-सी थी उम्मीदों से
ग़म मनाने के लिए आते हैं
तेरी हसरत को वो क्या समझेंगे
वो जमाने के लिए आते हैं
ख़्वाब में मुफ़लिसों के दाने भी
मुँह चिढ़ाने के लिए आते हैं
राख की तह मे छुप के कुछ शोले
घर जलाने के लिए आते हैं
उनकी तासीर है, वो महफ़िल का
दिल चुराने के लिए, आते हैं
ग़ज़ल: शिखा पचौली
चित्र: शुभ्रजित चौधरी