स्त्री सृष्टि की जिजीविषा को मूर्त रूप देने वाली है। फिर उसका पोषण भी करने वाली है।स्त्री प्रकृतिस्वरूपा है, निसर्गतः माननीया है। उसे माँ कह कर पूज्या समझना बहुत अच्छा है। लेकिन इसकी ओट में उसके बाकी किरदारों के सम्मान का हक़ मारना हमारे समाज की मूल खामी है। थोड़ी सी पड़ताल स्त्रीत्व और पुरुषत्व की …