आज गाँधी को नमन किया जाता है, करना भी चाहिए। कैसा करिश्माई व्यक्तित्व! बिना किसी तड़क-भड़क के लाखों लोगों की एकता का प्रतीक! किसी की दो पन्क्तियाँ याद हो आती हैं –
चल पड़े जिधर दो पग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गए कोटि दृग उसी ओर
हिन्दुस्तान भर के लोग बिना आजकल जैसे मीडिया के प्रचार के जिसके पीछे एक होकर चल देते थे, जिसने संस्कृति के आधार पर भारतीयों की नब्ज़ को पकड़ा, विश्व को “त्यक्तेन भुञ्जीथा” का महनीय सिद्धान्त देने वाली सम्पन्न भारतीय मनीषा और जीवन-पद्धति को जिसने अपने जीवन में उतार कर दिखाया, जिसके हर शब्द की अनुपालना में करोड़ों लोग एक साथ श्रद्धाभाव से उद्यत होते थे, जिसने समझा और समझाया कि असली भारत कहाँ बसता है, जो देश ही के लिए जिया, जो आज तक विश्व-पटल पर भारत को रेखांकित करता है, उसे नमन किया ही जाना चाहिए।
निस्सन्देह “अहिंसा” ही वह एक ताकतवर शब्द है जिसके कारण गाँधी के पीछे इतना संगठित जनबल था। लेकिन इतना अवश्य याद रखें कि जब आप और मैं कहते हैं कि आज़ादी “बिना खड्ग -बिना ढाल” मिल गयी तब हम उन लाखों देशभक्त हुतात्माओं के बलिदान पर एक पल में धूल डाल देते हैं जो असंख्य असह्य अमानवीय यातनाओं की पीड़ा सहकर भी अपना सर्वस्व इस देश के लिए लुटा गए। इसलिए व्यक्ति को व्यक्ति ही रहने दें, स्वदेश के हित मरने वालों की जान की कीमत की तुलना करने के राष्ट्रीय पाप से बचें। गाँधी ने कभी नहीं चाहा होगा कि उन्हें नोट पर छाप कर तो पूजा जाए, फिर चाहे उनकी शिक्षाओं को विस्मृत कर दिया जाये। वे इस देश में बसने वालों के अन्तस् का स्वर पहचानते थे। उनके इसी गुण ने उन्हें अद्वितीय जन-नेता बनाया। अतः आज का दिन साबरमती के सन्त के गुणों और व्यक्तित्व को अवश्य समर्पित करें। मगर फिर उन्हें भी याद किया करें जो खड्ग और ढाल उठा कर हमारे लिए ही लड़ मरे थे। एक कृतघ्न राष्ट्र कहलाए जाने से बचें। गाँधी जहाँ हों, हमें आशीष देते रहें।
भारत-भूमि बहुरत्न-प्रसूता है। एक ऐसा व्यक्ति जो ज़मीन से उठ कर राष्ट्र का शिखर-पुरुष बना, सादगी जिसका चरित्र रहा, उदात्त जीवन-मूल्य और नैतिक-आदर्श जिसके नित्य आचरण में अपना मूर्त-रूप प्राप्त करते थे, जिसका सम्पूर्ण जीवन एक तपोनिष्ट और कर्मठ नेता की तरह रहा, आज ही के दिन हम स्वतन्त्र भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री उन लाल बहादुर शास्त्री को भी याद करते हैं। विश्व में स्वतन्त्र भारत की एक गरिमामयी छवि बनाने की यात्रा में शास्त्री का योगदान अतुल्य है। उन परिस्थितियों में खाद्यान्न के विषय में देश को आत्मनिर्भर बनाने जैसा कठिन और पुनीत कार्य उन जैसी दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति रखने वाला व्यक्ति ही कर सकता था। लोगों में जोश और आत्मगौरव भर देने वाला “जय जवान, जय किसान” जैसा असाधारण नारा साधारण पृष्ठभूमि से आया और सदैव अपनी जड़ों से जुड़ा कोई स्वावलम्बी और स्वाभिमानी व्यक्तित्व ही दे सकता था। आज भी इस देश में उस पीढ़ी के कुछ ऐसे लोग हैं जो अब तक सोमवार का उपवास इसलिए रखते हैं क्योंकि दशकों पहले उन्होंने “शास्त्री जी को वचन दिया था”। उनका जीवन-चरित्र सर्वदा हमारे लिए पथ-प्रदर्शक बना रहे।
यह देश जीता रहे! हम जीते रहें! आज का राष्ट्रीय पर्व आपके लिए शुभकर हो! 🙂